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बाड़मेर भाजपा : आखिर राजपुरोहित समाज की अनदेखी क्यों ? एक समीक्षा...


रामेश्वर सिंह राजपुरोहित / समीक्षा
भाजपा के परंपरागत सपोर्टर, दिशा व दशा देने वाले राजपुरोहित समाज को आज फिर भाजपा ने ही धोखा दे दिया। राष्ट्रवादी समाज के साथ जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी बाड़मेर ने जिला कार्यकारिणी में कोई पद नहीं देख करके समाज के साथ जो कुठाराघात किया है यह समाज के लिए चिंतन व मनन का विषय  है। 20 पदाधिकारियों की सूची में एक भी राजपुरोहित समाज का बंधु सम्मिलित नहीं होना यह एक दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या यह भाजपा की ओर से राजपुरोहित समाज का राजनीतिक तौर पर पतन करने का संकेत हैं। अगर ऐसा है तो बहुत गड़बड़ है।.. पूरा पढ़ें...
क्या भारतीय जनता पार्टी राजपुरोहित समाज की खामोशी व संस्कारित जीवन को उनकी कमजोरी मान रही है। क्योंकि राजपुरोहित समाज की ओर से कभी भी किसी पार्टी पर दबाव नहीं बनाया गया, ना ही कभी भी किसी पार्टी की रणनीति का खुलकर के विरोध किया गया। राजपुरोहित समाज ने आज तक कभी भी टिकट की मांग या फिर पार्टी के अंदर कोई पद देने के लिए दबाव नहीं बनाया है। इस कारण भाजपा के कुछ चयनित लोगों ने राजपुरोहित समाज की इस खामोशी को समाज की कमजोरी मान लिया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि कहीं हम भी अब मौन स्वीकृति देकर के समाज के साथ कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं। भाजपा में दौड़ भाग करने वाले समाज के बंधुओं को भी चिंतन करना चाहिए। इस समय आपकी भी मौन स्वीकृति समाज के साथ कुठाराघात कर रही हैं। राजपुरोहित समाज भाजपा के परंपरागत सपोर्टर के रूप में रहा है। तो भाजपा की ओर से क्या एक भी पद देने लायक राजपुरोहित समाज को नहीं समझा। अगर भाजपा ऐसा कर रही हैं तो वे लोग भारतीय जनता पार्टी के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे है। इसका खामियाजा आने वाले समय में भाजपा को उठाना पड़ सकता है। 
बाड़मेर जिले जैसे क्षेत्र में जहां राजपुरोहित समाज के अच्छी वोटर संख्या हैं वहां पर ही अगर राजपुरोहित समाज को भारतीय जनता पार्टी किनारे कर रही हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हाल ही में बाड़मेर जिला कार्यकारिणी की जारी सूची में अध्यक्ष सहित 20 पदाधिकारी हैं। लगभग सभी जाति समाज को अहमियत देते हुए उनके भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय उनके समाज बंधु या प्रतिनिधियों को जिला कार्यकारिणी में कोई न कोई पद दिया है। लेकिन राजपुरोहित समाज का एक भी बंधु इस कार्यकारिणी में नहीं होना यह संकेत करता है कि या तो राजपुरोहित समाज के बीजेपी में मौजूद समाज के कथित नेताओं की भाजपा में पकड़ कमजोर है। या भाजपा ने समझ लिया है कि राजपुरोहित समाज को केवल वोटर के रूप में ही उपयोग लेना है। तो याद यह दोनों ही प्रकार से भाजपा की गलतफहमी है। राजपुरोहित समाज एक बुद्धिजीवी समाज है। वोटर के रूप में राष्ट्रवाद के कारण भाजपा के पीछे-पीछे चल रहा हैं। लेकिन राजपुरोहित समाज की खामोशी को भाजपा की ओर से गलत लाभ उठाने की जो कोशिश की जा रही है उसके खिलाफ समाज के बंधुओं को आगे आना चाहिए, अपने विचार रखने चाहिए और अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए। समाज के प्रति आप की भी जवाबदेही बनती हैं।
जिला कार्यकारिणी में भी अगर एक भी समाज बंधु को भाजपा जगह नहीं देती हैं, तो वह किस मुंह से राजपुरोहित समाज से वोट मांगने के लिए आगामी दिनों में उनके पास जाएंगे। समाज के बंधुओं को भी विचार व चिंतन करना चाहिए कि क्या ऐसे ही हम राष्ट्रवाद के मौह में समाज का राजनीतिक तौर पर पतन होते देखते ही रहेंगे। क्या भाजपा के उच्च अधिकारी हमारी प्रतिभाओं को इसी तरह दबाते रहेंगे। भाजपा के उच्च अधिकारियों को इस विषय की जवाबदेही बनती है। उनको अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। आखिर किस कारण से राजपुरोहित समाज को जिला कार्यकारिणी में जगह देने की बजाए नजरअंदाज किया गया। समाज के युवा वोटरों की भी जवाब नहीं बनती है जब किसी पार्टी में समाज का प्रतिनिधि ही नहीं है तो उस पार्टी के पीछे भेड़ चाल चलने का क्या फायदा। अधिकतर समाज बंधु भाजपा के झंडे ले लेकर के दौड़ते ही जा रहे हैं लेकिन भाजपाई तवज्जो तक नहीं देते हैं तो इसका क्या मतलब है? वर्तमान में समाज बंधु को जहां जहां भाजपा की ओर से मिले छोटे छोटे पद व दायित्व से तुरंत त्याग पत्र दे कर के समाज के साथ खड़ा होना चाहिए। अगर अब भी आप समाज के साथ नहीं खड़े रहे, तो शायद फिर आपको भी धीरे धीरे भाजपाई साइड में कर देंगे। उस समय आपको समाज की आवश्यकता पड़ेगी।
इस समय सामाजिक एकता की जरूरत है। कम से कम एक समाज बंधु को भाजपा जिला कार्यकारिणी में सम्मिलित करवाएं। अपनी खामोशी को तोड़ने का समय आ गया है। अब फिर भी खामोश रहे तो यह समाज का नुक़सान है। हम राष्ट्रवादी हैं, लेकिन किसी पार्टी के पीछे-पीछे जा करके अपना राष्ट्रवाद सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं। जिस दल में समाज के प्रतिनिधियों का मान सम्मान व अहमियत नहीं है तो फिर उस दल की पूंछ पकड़कर क्यों बैठे रहे। अपना खुद का वजूद है आगे की दिशा और दशा खुद को तय करनी है किसी पार्टी के पीछे पीछे चल करके केवल मात्र उसके वोटर बन सकते हैं लेकिन अपनी पहचान नहीं बना सकते।
इस समीक्षा पर अपनी प्रतिक्रिया व कमेंट नीचे दिए बॉक्स में जरूर दें।... धन्यवाद।

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3 टिप्पणियाँ

  1. महोदय दो कोड़ी के पदों की लालचा को लेकर समाज को एक पार्टी के चश्मे से देखना इससे न सिर्फ हमारी सम्प्रभुता प्रभावित होती अपितु वैधक पार्टी एकाधिकार प्रतित होता लेकिन हकीकत ऐसा नहीं है वैसे कोई भी पार्टी अगर जातीय समीकरणों को मध्य नजर रखकर पदों का आवंटन करती है तो वह जरुर आलोचनात्मक ओर निंदनीय हैं हां अगर किसी सक्रिय कार्यकर्ता का नजरअंदाज हुआं है तो वह जरुर सारगर्भित बिंदु है।
    समाज को राजनीतिक पार्टी से जोड़ना या पार्टी को समाज से जोड़ना दोनों ही समाज की सम्प्रभुता के पतन के कारण है।

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  2. एक ही पार्टी की पूंछ पकड़ने का नतीजा है युवाओं को आगे आने की जरूरत है

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  3. अपने समाज में एकता की कमी है

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