टिड्डी के बारे मे तो आपने अवश्य ही सुन रखा होगा । वैसा आजकल टिड्डी आने के समाचार बहुत ही कम सुनने को मिलते हैं। लेकिन कई साल पहले टिड्डी पूरे झुंड के साथ खेतों पर आक्रमण करती थी । और किसान उनके आगे बेबस था । वह बेचारा कुछ नहीं कर सकता था । उसकी नजरों के सामने उसके पूरे खेत को चट कर जाती थी । हाल ही में राजस्थान के बाड़मेर जालौर सहित कई पश्चिमी जिलों में इसका भारी आतंक देखने को मिल रहा है।
वैसे देखा जाए तो यह आर्थिक महत्व का कीट है। कुछ देशों के अंदर इसका प्रयोग भोजन के रूप मे भी किया जाता है। लेकिन कुछ देस ऐसे भी होते हैं। जिनके अंदर टिडडे को बहुत बड़ा शत्रू माना जाता है।इनके प्रकोप से कोई भी पौधा बच नहीं सकता है। आमतौर पर यह जामुन और नीम जैसे पेड़ पौधों को नहीं खाते हैं।वैसे देखा जाए तो टिड्डी का प्रकोप भारत के अंदर कुछ ज्यादा ही रहा है। जब भारत पर टिड्डी का आक्रमण किया है। तब तब भारत के अंदर अकाल पड़ा है। अब तक भारत के अंदर टिड्डी ने 15 बार आक्रमण कर चुके हैं।
भारत के अंदर इसकी तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। लोकस्टमाइग्रेटरिया ,पतंगा सक्सिन्टा ,शिसटोसर्का आदि। विदेशी कीटों के पंख होते हैं। और वे मार्ग के अंदर आने वाले हर चीजों को साफ कर देती हैं।और पूरे ईलाके को विरान बना देती हैं।
मरुस्थलीय टिड्डियाँ
टिड्डी (Locust) ऐक्रिडाइइडी (Acridiide) परिवार के ऑर्थाप्टेरा (Orthoptera) गण का कीट है। हेमिप्टेरा (Hemiptera) गण के सिकेडा वंश का कीट भी टिड्डी या फसल डिड्डी (Harvest Locust) कहलाताहैं
टिड्डी की प्रजातियां
टिड्डी की प्रमुख रूप से चार जातियां पाई जाती हैं।
स्किस टोसरका ग्रिग्ररिया नामक की मरूस्थल मे रहने वाली टिड्डी
उतरी अमरिका की रॉकी पर्वती की टिड्डी, साउथ अमरीकाना, इटालीय तथा मोरोक्को टिड्डी उष्ण कटिबंधीय आस्ट्रेलिया, यूरेशियाई टाइगा जंगल के दक्षिण के घास के मैदान , अफ्रीका, ईस्ट इंडीज, तथा न्यूजीलैंड में पाई जाती हैं।दक्षिण अफ्रीका की भूरी एवं लाल लोकस्टान पारडालिना
टिड्डी की प्रजनन स्थिति
मादा टिड्डी रेत के अंदर सैल बनाकर 10 से लेकर 100 अंडे देती है। जो गर्म जलवायु होने पर 20 दिन के अंदर फूट जाते हैं। लेकिन शीतकाल के अंदर अंडे सुप्त बने रहते हैं। मादा टिड्डी के पंख नहीं होते हैं। बस वह अन्य बातों के अंदर अन्य टिड्डी के समान ही होती है। उसका भोजन वनस्पति है। यह 5 से 6 सप्ताह के अंदर व्यवस्क हो जाती है। इस अवधी के अंदर टिडडी की त्वचा कई बार बदलती है। वह 20 से 30 दिन के अंदर पूरी प्रौढ हो जाती है। कुछ प्रजातियों के अंदर यह कुछ महिनों का काम होता है।टिडडी का विकास आद्रता और ताप पर काफी हद तक निर्भर रहता है।
मैथुन के बाद थोड़ी थोड़ी देर बाद अंडे देने की क्रिया होने लगती है।यह हेमन्त मौसम तक चलती है। मादा एक साथ 20 अंडे एक सुरंग मे देती है। जो एक चिपकने वाले पदार्थ से चिपके रहते हैं।इन अंड़ों से शिशु निकलते हैं जिसे निफ कहा जाता है। यह टिड्डी का छोटा रूप होता है। जोकि पांच बार त्वचा को बदलता है।इनकी दो अवस्थाएं होती हैं।पहली घटाव की तरफ होती है। तो दूसरी प्रकोप की तरफ होती है। इनको क्रमश सोलेट्री फेज और ग्रीगोरियस फेज कहा जाता है।
टिड्डियों की दो अवस्थाएँ होती हैं
एक चारी
यूथचारी
प्रत्येक अवस्था कायकी व्यवहार और आक्रति आदि के अंदर एक दूसरे से अलग अलग होती है।एकचारी के अंदर अपना रंग परिवर्तित करने की क्षमता होती है। यह पर्यावरण के अनुसार खुद को बदल लेती है। इसकी ऑक्सिजन लेने की गति मंद होती है। जबकि यूथचार के अंदर इसका रंग फिक्स पीला होता है। इसकी ऑक्सिजन लेने की दर उंची होती है। यह ताप को अ धिक अवशोषित कर लेता है। इसकी म्रत्यूदर काफी अधिक होती है। फिर भी यह खुद को जीवित रखती हैं।
एकचारी टिड्डी यदि झूंड के अंदर पलती है। तो वह बाद मे यूथचारी के अंदर बदल जाती है। और यदि यूथचारी टिड्डी एकांत के अंदर रहती हैं तो वह एकचारी हो जाती हैं।
टिड्डी के निवास स्थान
टिड्डी अपने निवास स्थानों को ऐसी जगह पर बनाती हैं। जहां पर जलवायु असंतुलित होता है।ऐसी जगह काफी कम ही होती हैं।
फिलिपीन के आर्द्र तथा उष्ण कटिबंधीय जंगलों को जल चुके घास के मैदान
कैस्पियन सागर ऐरेल सागर व बालकश झील में गिरनेवाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा
रूस के शुष्क तथा गरम मिट्टी वाले द्वीप, यह नम और ठंडे रहने की वजह से काफी उपयुक्त हैं। इस क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में टिड्डियाँ एकत्र होती हैं
मरूस्थल के अंदर घास के मैदान जहां पर जलवायु विषमता रहती है।
यूथचारी टिड्डियाँ गर्मी के दिनों के अंदर उड़ती हैं। जिसकी वजह से इसकी पेशियां सक्रिय रहती हैं। और इसके शरीर का ताप अधिक होता है। वर्षा की स्थिति के अंदर इनकी उड़ान नहीं होती है।मरुभूमि टिड्डियों के झुंड गर्मीकाल के अंदर उड़ान भरती हैं। यह कई देशों के अंदर आते हैं। जिसमे अरब देस भारत ईरान और अफ्रिका आदि आते हैं। लोकस्टा माइग्रेटोरिया भारत अर्फिका के अंदर आकर फसल को पूरी तरह से बरबाद कर देती है।
यह टिडडी पहले पूर्वी अफ़्रीकी देशों जैसे इथियोपिया, सोमालिया मोरोक्को, मोरिटानिया के साथ साथ अरब देश यमन के अंदर तबाही मचाकर भारत की और रूख करते हैं। टिड्डी हिंद महासागर को पार करके भारत और पाकिस्तान के अंदर आ जाती हैं। टिड्डी दल हिंद महासागर को पार करना एक प्राक्रतिक चक्र का हिस्सा है। यह कई बार हो चुका है।
टिड्डियों का भोजन और कुछ खास बातें
टिड्डियों के दलों के खेत पर आक्रमण करने से खेत को भारी नुकसान होता है। समझो खेत के अंदर कुछ नहीं बचता है। एक कीट अपने वजन के बराबर फसल खा जाता है। इसका वजन 2 ग्राम होता है।
एक छोटे से टिडडी दल का हिस्सा एक दिन मे उतनी खाध्य सामग्री खा जाते हैं जितनी कोई 3000 हजार इंसान खा सकते हैं। लेकिन टिडडे की उम्र कोई ज्यादा नहीं होती है। यह 4 से 5 महिने ही जीवित रह पाते हैं।
इन कीडों की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यह हवा के अंदर 150 किलोमिटर एक सांस मैं उड़ सकते हैं। और हिंद महासागर को पार करने के लिए इनको 300 किलोमिटर की दूरी पार करनी होती है।
टिड्डी की विशेष क्षमताओं से वैज्ञानिक भी हैरान
हाल ही के अंदर ब्रेटेन , अमेरिका और स्पेन के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक विशेष तकनीकी का विकास किया है। जो सड़क पर होने वाली दूर्घटनाओं को कम करने मे मदद कर सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर साल न जाने कितने लोग सड़क दूर्घटना के अंदर मारे जाते है। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक विकास का आइडिया टिड्डी से लिया है। उनके अनुसार टिड्डी लाखों की संख्या के अंदर एक साथ उड़ती हैं। और इनका घनत्व एक वर्ग किमी के अंदर 8 करोड़ तक होती हैं। इतनी ज्यादा संख्या के अंदर होने के बाद भी यह कभी भी एक दूसरे से टक्कराती नहीं हैं।
इसके अलावा यह खुद को शिकारी पक्षियों से बचाने मे भी कामयाब रहती हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार इनके आंखों के पीछे एक हिस्सा डिटेक्टर मूमेंट होता है। इसकी मदद से उनको यह पता चल जाता है कि कोई अन्य चीज उनके रस्ते के अंदर आ रही है। और उसके बाद यह खतरे को भाप कर अपना रस्ता बदल लेती हैं। इसके अलावा टिड्डी के देखने क क्षमता मनुष्यों से कई गुना अधिक होती है। अपनी इसी क्षमता का वे इस्तेमाल करके दूर तक देख सकती हैं। और अपने आने वाले खतरे को आसानी से भांप लेती हैं। और अपना रस्ता बदल लेती हैं।
वैज्ञानिकों ने इसी आधार पर केस ऐवायडेंस टेंक्नॉलाजी का विकास किया है।यह प्रक्रिया के अंदर कार के पीछे या आगे की बाधा को रडार के द्वारा पकड़ा जाता है। और उसे एक स्क्रीन पर भेजा जाता है। और निर्देश दिया जाता है कि अब क्या करना है।
टिड्डी का इतिहास
1422 ई से 1411 ईसा पूर्व होरेमब, प्राचीन मिस्र के कब्र-कक्ष में टिड्डी का उल्लेख मिलता है।
इतिहास के अंदर टिड्डियों का उल्लेख मिलता है। जो हवा की दिशा के अंदर और मौसम बदलने से अचानक पहुंच गए और विनाश किया ।
प्राचीन मिस्रियों ने 2470 से 2220 ईसा पूर्व की अवधि में कब्रों पर टिड्डों की नक्काशी की थी।
इलियड ने आग से बचने के लिए विंग में ले जाने वाले टिड्डों का उल्लेख किया है।
कुरान में टिड्डियों के स्थानों का भी उल्लेख किया गया है।
नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में, चीनी अधिकारियों ने टिड्डे विरोधी अधिकारियों को नियुक्त किया गया था।
अरस्तू ने टिडडी के प्रजनन और उसकी आदतों का उल्लेख किया था।
लिवी ने 203 ईसा पूर्व टिडडी से होने वाली बिमारियों का उल्लेख किया है।
311 ईस्वी के अंदर चीन के अंदर फैली एक महामारी से 98 प्रतिशत लोग मरे थे । इसमे टिडडी को दोषी माना था।
टिडडी का विभिन्न भागों के अंदर वितरण
टिड्डी अंटार्कटिका और उत्तरी अमेरिका जैसी जगहों पर घूमती रहती हैं।ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलियाई प्लेग टिड्डे पाये जाते हैं।
रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और भारतीय उपमहाद्वीप के अंदर पाये जाते हैं। यह सबसे लंबी दूरी तक जा सकती है।2003-4 में पश्चिमी अफ्रीका में एक बड़ी घुसपैठ हुई।
2003 में मॉरिटानिया, माली, नाइजर और सूडान में पहला प्रकोप हुआ।
जलसेक को संभालने की लागत $ 122 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी, और वहां पर फसलों को नुकसान $ 2.5 बिलियन तक था।
प्रवासी टिड्डे आमतौर पर अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में झुंड में वर्गीकृत होते हैं, लेकिन यूरोप में कम ही पाये जाते हैं।रॉकी माउंटेन टिड्डी सबसे महत्वपूर्ण टिड्डी मे से एक था। लेकिन सन 1902 के अंदर यह विलुप्त हो गया था।प्लेन टिड्डी भी एक प्रजाति है। जो अब काफी दुर्लभ हो चुकी है।
टिड्डियों को खाते लोग
इज़राइली मिस्र के अंदर तो टिड्डियों को लोग एक अच्छे भोजन के तौर पर खाया जाता है। सामान्यत यह टिडडे 1 से दो इंच लंबे होते हैं। यह काफी स्वादिष्ट होते हैं। इनको तेल के अंदर तला जाता है।लाल, पीले, चित्तीदार भूरे और सफेद टिड्डे खाने के लिए ठीक हैं। उत्तरी अफ्रीकी यहूदियों के अंदर टिडियों को खाने की परम्परा थी। लेकिन टिडियां बहुत कम ही उत्तर की ओर गई होंगे । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अफ्रीकी यहूदियों ने इनको खाना बंद कर दिया हो । आपको बतादें कि टिडियां जस्ता, लोहा और प्रोटीन का स्रोत होते हैं।
टिड्डी नियंत्रण
टिड्डी का नियंत्रण करना भी कोई आसान काम नहीं है। सरकार टिड्डी के नियंत्रण के लिए विशेष दल का गठन करके रखती है। टिड्डी को हवा के अंदर नष्ट करने के लिए विषैला चारा और विषैली ओषधियों का छिड़काव किया जाता है। गेंहू की भूसी का भी छिड़काव होता है। अंडों को नष्ट करने के लिए तेल का छिड़काव किया जाता है।
6 टिप्पणियाँ
सही बात है सर
जवाब देंहटाएंसही बात है सर
जवाब देंहटाएंसहीहै
जवाब देंहटाएंRight
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंhttps://anunaadlife.com/
जवाब देंहटाएं